Shani Jayanti 2024:
Shani Jayanti इस वर्ष 6 जून, गुरुवार को है। हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनिदेव का जन्मदिन मनाया जाता है। यह दिन उन लोगों के लिए विशेष है जिनकी कुंडली में शनि दोष, शनि महादशा, साढ़ेसाती या ढैय्या है। इसके अलावा जिन लोगों की कुंडली में शनि की स्थिति कमजोर होती है या आंतरिक ग्रहों के साथ हो तो उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन सभी लोगों को Shani Jayanti के अवसर पर न्याय के देवता शनि महाराज की पूजा करनी चाहिए। तिरूपति स्थित ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव के मुताबिक, Shani Jayanti के मौके पर लोगों को शनिदेव की कृपा पाने के लिए कुछ ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए. शनि के लिए एक सरल उपाय है, इसे करने से आपको शनि की कृपा प्राप्त होगी और उनके प्रकोप से मुक्ति मिलेगी तथा वे आपकी रक्षा करेंगे।
शनि जयंती पर एक उपाय करें
Shani Jayanti वाले दिन सुबह उठकर दैनिक कार्यों से छुट्टी ले लो। तब शनि मंदिर जाकर शनि की पूजा करें। तब शनि स्तोत्र या शनि कवच पढ़ें। यदि आप इन दोनों पाठों में से किसी भी एक को पढ़ेंगे, तो शनि देव से संबंधित समस्याएं दूर हो जाएंगी।
शनिस्तोत्र का निर्माण राजा दशरथ ने किया था
पद्म पुराण में कहा गया है कि एक बार जब शनि देव रोहिणी नक्षत्र को भेदने वाले थे, ज्योतिषियों ने राजा दशरथ को इसके बुरे परिणाम बताए। 12 साल अकाल रहेगा। राजा दशरथ को चिंता हुई। वे नक्षत्र मंडल में शनि देव से लड़ने गए। उनके साहस को देखकर शनि देव प्रसन्न हो गए और 12 वर्ष तक उनके राज्य में कोई अकाल नहीं होगा,उनको वरदान दिया ।
इससे प्रसन्न होकर राजा दशरथ ने शनि देव की प्रशंसा की। उस समय उन्होंने शनिस्तोत्र बनाया। शनि ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र को सच्चे मन से पढ़ेगा, उसे शनि की कोई बाधा नहीं होगी। जिस व्यक्ति ने इस स्तोत्र को हर सुबह, दोपहर और शाम पाठ किया, वह शनि से पीड़ित नहीं होगा।
शनि स्तोत्र:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।