CM Atishi Marlena
दिल्ली की नवनिर्वाचित CM Atishi Marlena ने कार्यभार संभालते ही कार्रवाई शुरू कर दी है। आज होने वाली कैबिनेट मीटिंग में रुकी हुई कई योजनाओं को फिर से शुरू करने का काम शुरू हो गया है। इन योजनाओं के साथ-साथ आतिशी ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी महत्वपूर्ण निर्णय ले सकती है। क्योंकि दिल्ली के कई महत्वपूर्ण विभागों में वर्षों से ट्रांसफर-पोस्टिंग नहीं हुई है। क्या दिल्ली की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों, खासकर मेडिकल डायरेक्टर और मेडिकल सुपरिटेंडेंट, जो बड़े-बड़े अस्पतालों में जम की तरह बैठ गए हैं, क्या उनका स्थानांतरित किया जाएगा?
दरअसल, पिछले चार साल से, दिल्ली सरकार के पच्चीस से अधिक अस्पतालों में दर्जनों एमडी और एमएस अस्पतालों के प्रमुख पद पर रहे हैं। अब इन अस्पतालों में दवा और मरीजों का ठीक से इलाज की कमी है। सूत्रों ने बताया कि दिल्ली की जनता इन डॉक्टरों और ठेकेदारों के नेक्सस का भुगतान कर रही है। विशेष रूप से लोक नायक, जीबी पंत और दीन दयाल जैसे बड़े अस्पतालों में हालात बदतर होते जा रहे हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) गाइडलाइंस का खुलमखुल्ला उल्लंघन करते हुए इन अस्पतालों के मेडिकल डायरेक्टर और मेडिकल सुपरिटेंडेंट बीते चार साल से भी अधिक समय से एक ही पद पर बने हुए हैं।
दिल्ली में सीवीसी नियमों का उल्लंघन
2012 में सीवीसी और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने संवेदनशील पदों पर तैनात अधिकारियों को बारी-बारी से तबादले करने का आदेश दिया था। यह केंद्र सरकारी कर्मचारियों पर खासकर लागू होते हैं। CCVC ने इस सूचना के अनुसार मंत्रालयों, विभागों, सरकारी अस्पतालों, संगठनों और सीवीओ को संवेदनशील पदों और उन पर काम करने वाले कर्मचारियों की पहचान करनी चाहिए।
CCVC नोटिफिकेशन में क्या कहा गया है?
सीवीसी के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि निहित स्वार्थों को बढ़ने से बचाने के लिए उन्हें हर दो या तीन साल में ट्रांसफर किया जाए। सीवीसी ने स्पष्ट रूप से कहा कि अधिकारी लंबे समय तक एक ही पद पर रहते हैं। लंबे समय तक एक ही पद पर रहने से अधिकारियों को भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होने और निहित स्वार्थ विकसित करने का अवसर मिलता है, जो सही भी नहीं है और आम लोगों के हित में भी नहीं है।
ये लोग सालों से लाभदायक पदों पर रहे हैं
लेकिन पिछली दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने पिछले दो दशकों से सीवीसी के निर्देशों का पालन नहीं किया। लेकिन एलजी और सीएम में निर्माण नहीं होने की भी वजह हो सकती है। लेकिन अस्पतालों में काम कर रहे ये मेडिकल डायरेक्टर और मेडिकल सुपरिटेंडेंट इसका भरपूर लाभ उठाया। नतीजा यह हुआ कि इन अस्पतालों में न तो दवा उपलब्ध है और न ही मरीजों की जांच की तारीखें मिल रही हैं। क्योंकि खरीदी गई मशीन लगाई नहीं गई है, और अगर लगाई भी गई तो कोई इसे चलाने वाला नहीं है।
जीबी पंत, एलएनजेपी और दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल
दिल्ली के लोकनायक अस्पताल में कई दवाओं कि किल्लत है। यहां मरीजों के लिए विशेष सुविधाएं और दवा भी उपलब्ध नहीं हैं। कोरोना काल से लेकर जी-20 तक, इस अस्पताल में लगातार घोटाले हुए हैं। अस्पताल सूत्रों के अनुसार, सीबीआई और एसीबी ने कई बार अस्पताल के MD डॉ. सुरेश कुमार से पूछताछ की है। कोरोना काल की शुरुआत में, डॉ. सुरेश कुमार एलएनजेपी अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर बने। कोरोना काल में देश के गृहमंत्री ने संसद में इस अस्पताल की कमियों को बताया।
डॉक्टर क्या कहते हैं?
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के एक डॉक्टर ने कहा, “अब जब आतिशाी ने पदभार संभाल लिया है, तो उम्मीद की जा रही है ये सारे फैसले जल्द लिए जाएंगे।” नए मुख्यमंत्री को भी सालों से दिल्ली के अस्पतालों में जम की तरह बैठे एमडी और एमएस को स्थानांतरित करना होगा। क्योंकि सीवीसी की गाइलाइन कहती है कि कोई भी अधिकारी अधिकतम तीन साल तक सेंसिटिव पोस्ट पर रह सकता है। तीन साल से अधिक समय रहने पर, इसमें ऊपर के लोगों का योगदान माना जाएगा।’
आतिशी अब क्या करेगी?
उसने आगे कहा, “कई सारे आस्पतालों के एमडी और एमएस 4 साल से भी ज्यादा समय तक एक ही पद पर रहे हैं। सीवीसी नियमों के अनुसार, किसी भी सेंसिटिव पद पर कोई एमडी या एमएस 3 साल से अधिक नहीं रहना चाहिए। दिल्ली के कुछ अस्पतालों में एमडी और एमएस भी सीबीआई और एसीबी की जांच से गुजर रहे हैं। दिल्ली सरकार के प्रमुख अस्पतालों में जीबी पंत, लोकनायक, दीन दयाल, अरुणा आसफ अली, अतरसेन जैन, बाबू जगजीवन राम मेमोरियल अस्पताल, भगवान महावीर अस्पताल, दीप चंद बंधु, राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और गुरु गोविंद सिंह गवर्मेंट अस्पताल शामिल हैं।