Tag: कब से छठ की शुरूआत हुई थी

  • Chhath festival begins: 49 दिन पहले छठ पर्व शुरू होता है..।यह स्थान है जहां भगवान कृष्ण के पुत्र ने पूजा की शुरुआत की।

    Chhath festival begins: 49 दिन पहले छठ पर्व शुरू होता है..।यह स्थान है जहां भगवान कृष्ण के पुत्र ने पूजा की शुरुआत की।

    Chhath festival begins: छठ पर्व 49 दिन पहले से शुरू होता है

    Chhath festival begins: ये नालंदा शहर है। अब गांव नगर पंचायत है, जो मुख्य नालंदा से सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि यह स्थान लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत इसी जगह से हुई थी। इससे पहले, इसकी उत्पत्ति की कथा बताएं। आप जानते हैं कि इस स्थान पर छठ पर्व 49 दिन पहले से शुरू होता है।

    क्या है  49 दिनों की कहानी

    स्थानीय और पंडित बताते हैं कि भगवान कृष्ण के पुत्र राजा शांब को कुष्ठ रोग था। उस समय वह यात्रा पर निकले हुए थे; भूख लगी तो उन्होंने अपने चाकर को बुलाया  और उनसे जल लाने को कहा। चाकर ने पूरे क्षेत्र को छान लिया, लेकिन कहीं जल नहीं मिला। थोड़ी दूर जाने पर उसे एक हल्के गड्ढे में एक वाराह (सूअर) लोटपोट करते देखा। अब चाकर ने सोचा कि ये पानी राजा के लिए सुरक्षित है या नहीं। लेकिन आदेश को अनदेखा नहीं किया जा सकता था, इसलिए उसने एक पात्र में जल लेकर राजा को दिया। राजा शांब को प्यास लगी थी, लेकिन जब उन्होंने जल पीया, तो उनका कुष्ठ रोग ठीक होने लगा।

    आश्चर्य से राजा ने चाकर से जल का स्थान पूछा। फिर चाकर ने बताया गया स्थान पर गए और वहां एक जलाशय बनाया। सूर्य को शरीर का देवता मानते हुए, उन्होंने जलाशय में डुबकी लगाकर उसे अर्घ्य दिया। सूर्यदेव प्रसन्न हुए और राजा शांब को 49 दिनों तक पूजा करने की सलाह दी ताकि उनका कुष्ठ रोग पूरी तरह से ठीक हो जाए। यहीं से 49 दिनों की परंपरा शुरू हुई।

    अब छठी मईया की कहानी में बताया गया है कि भगवान सूर्य और सविता, दुर्गा का छठा रूप और छठी मईया। राजा शांब ने माता सविता की पूजा भी शुरू की क्योंकि सूर्य और सविता के घनिष्ठ संबंध के कारण इस तालाब की खुदाई पर सूर्य और सविता की प्रतिमा मिली थी। छठी मई को भगवान सूर्य को निरोगी काया देने वाला माना जाता है, जो संतान को सुख और बेहतर जीवन देता है। इसलिए लोग छठ पर्व पर दोनों की पूजा करते हैं।

    वाराह से बड़गांव कैसे बनी यह जगह

    यहां पहले अधिक सुअर थे, स्थानीय पंडित ललन पांडे ने बताया। इसलिए इस स्थान का नाम वाराह था। क्योंकि वर के वृक्ष भी यहाँ थे। इसलिए इसका शाब्दिक अर्थ समय के साथ बदल गया। बस्तियां बस गईं और लोगों ने स्थानांतरित होना शुरू कर दिया। फिलहाल, सैकड़ों वर्षों से इसे बड़गांव कहा जाता है। सूर्यपुराण और कई धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान को वाराह कहा गया है।

    49 दिनों का पूजन विधि विधान क्या है? पंडित देवानंद पांडे बताते हैं कि लोगों का मौजूद होना बहुत जरूरी है, हालांकि पंडित उनकी गैर मौजूदगी में भी पूजा करते हैं। यह पद्धति साल भर 49 दिनों तक चलती है, लेकिन छठ पर्व से एक महीना 19 दिन पहले पूजा करने से कुष्ठ रोगियों को विशेष लाभ मिलता है। इस दौरान खाने-पीने से जुड़े कई सामान पर पाबंदी लगाई जाती है। नियमित रूप से स्नान करना, स्वच्छ भोजन करना और स्वच्छ जीवन यापन करना चाहिए। साथ ही छठ पर्व पर पास के सूर्य मंदिर से दंडवत आना भी होता है।

    क्या प्रशासनिक तैयारी है?

    अब बात इस ऐतिहासिक स्थान पर छठ पर्व की तैयारी पर है। प्रशासन पूरे जिले में बहुत मेहनत कर रहा है। जिलाधिकारी ने यहां के घाटों को कई बार देखा है और उनके आदेशानुसार यहां छह ठहराव स्थल बनाए गए हैं जहां छठ व्रती और उनके परिवार ठहरकर पूजन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, आसपास की दुकानें भी सज रही हैं। प्रशासन ने जगह-जगह तोरणद्वार भी बनाए हैं। छठ पर्व के दौरान घाट पर प्रशासनिक अधिकारियों और चिकित्सकों की उपस्थिति भी होगी, जो प्राथमिक चिकित्सा और निगरानी कमरे के रूप में कार्य करेंगे।


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