Lolark Chhath
Lolark Chhath: काशी में कई चमत्कारी स्थान हैं। विज्ञान भी इन जगहों पर असफल हो जाता है। वैसे तो निसंतान दंपति आईवीएफ तकनीक का उपयोग करते हैं। काशी में एक ऐसा प्राचीन और ऐतिहासिक कुंड है जहां एक निश्चित तिथि पर माता-पिता को स्नान करने से उनकी सूनी गोद भर जाती है यहां स्नान करने से आपको कुष्ठ और चर्म रोगों से भी छुटकारा मिलता है।
काशी में भगवान सूर्य से इस तीर्थ का सीधा संबंध है। माना जाता है कि भगवान सूर्य ने इस स्थान पर हजारों वर्षों तक तपस्या की थी। आज सूर्य की पहली किरण इसी स्थान पर पड़ती है, ऐसा माना जाता है। सूर्य और मां गंगा का इस स्थान पर तीर्थस्थल हैं। गढ़वाल के राजा को 9वीं सदी में यहां स्नान से संतान की प्राप्ति हुई थी।
लोलार्क छठ के दिन विशेष ऊर्जा होती है
काशी का इतिहास जानने वाले बीएचयू के प्रोफेसर प्रवीण सिंह राणा ने बताया कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को देश भर से आने वाले भक्तों की भीड़ यहां मिलती है। इस स्थान को काशी के द्वादश आदित्यों में से एक माना जाता है। लोकाकेश्वर महादेव का भी मंदिर है। लोलार्क षष्टी के दिन इस कुंड पर सूर्य की विशेष किरण पड़ती है और मां गंगा की ऊर्जा बढ़ती है, इसलिए इस दिन स्नान करने से नि:संतान दंपति को संतान मिलती है।
60 प्रतिशत केस सफल रहे हैं
60% केसों में नि:संतान दंपति को संतान सुख मिलता है, प्रवीण सिंह राणा ने बताया। ऐसे प्रमाण कई अध्ययनों से मिले हैं। यही कारण है कि लोलार्क षष्टी के दिन लाखों परिवार स्नान करने के लिए यहां आते हैं।
9 सितंबर को लोलार्क छठ है।
मंदिर के पुजारी रमेश कुमार पांडेय ने कहा कि इस बार 9 सितंबर को लोलार्क छठ होगी। यह स्नान इस बार 8 सितंबर की रात्रि 12 बजे से शुरू होगा और सोमवार को पूरे दिन चलेगा। विवाहित जोड़े को इस कुंड में स्नान करते समय एक फल भी डालना चाहिए। फिर पूरे एक साल तक उस फल को खाने से बचना होगा। यहां स्नान करने के बाद जिन माताओं की सूनी गोद भर जाती है, वे फिर से अपनी मन्नत उतारने आती हैं।