CM Yogi Adityanath ने रामा एजुकेशनल सोसायटी द्वारा नवस्थापित 150 सीटों के डॉ0 बी0एस0 कुशवाह आयुर्विज्ञान संस्थान, कानपुर का उद्घाटन किया
उत्तर प्रदेश के CM Yogi Adityanath ने कहा कि युवावस्था प्रत्येक प्रकार की चुनौतियों से जूझने की सामर्थ्य रखती है। प्रत्येक विपरीत परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखती है। विद्यार्थियों को अपने विषय में पारंगत होने के साथ-साथ देश, काल और समाज की परिस्थितियों के बारे में भी जानकारी रखनी चाहिए। एक युवा पलायनवादी नहीं हो सकता। वह समय, काल तथा प्रवाह से स्वयं को अबाधित नहीं मान सकता। इस दृष्टि से भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी जनपद कानपुर नगर में रामा विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के तृतीय दीक्षान्त समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को उपाधि प्रदान की। मुख्यमंत्री जी ने इन्फोसिस फाउण्डेशन की सह-संस्थापक श्रीमती सुधा मूर्ति को डॉक्टर ऑफ साइन्स की मानद उपाधि प्रदान की। श्रीमती सुधा मूर्ति की अनुपस्थिति में उनकी ओर से यह उपाधि रामा विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ0 प्रणव सिंह ने ग्रहण की। उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों ने भी अपने अनुभव साझा किये। इस अवसर पर उन्होंने रामा एजुकेशनल सोसायटी द्वारा नवस्थापित 150 सीटों के डॉ0 बी0एस0 कुशवाह आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनपुर, कानपुर का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उद्घाटन किया। मुख्यमंत्री जी ने स्व0 बी0एस0 कुशवाह जी को नमन करते हुए उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके पूर्व उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में पौधरोपण किया। मुख्यमंत्री जी ने प्रभु श्रीराम की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर पूजन किया।
मुख्यमंत्री जी ने उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को बधाई देते हुए कहा कि यह क्षण अत्यन्त अभिभूत करने वाला है। कानपुर जनपद के एक अर्द्धविकसित क्षेत्र में जो यात्रा चार दशक पूर्व प्रारम्भ हुई थी तथा जो बीज रोपा गया था, आज वह एक विराट वटवृक्ष बनकर एक विश्वविद्यालय के रूप में शिक्षा, स्वास्थ्य, तकनीकी ज्ञान, शोध, नवाचार, निवेश तथा रोजगार का बेहतरीन केंद्र बनकर उभरा है। संस्थान में हजारों विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। कोई संस्थान विकास का माध्यम भी बन सकता है, यह रामा विश्वविद्यालय ने कानपुर के सेमी अर्बन एरिया में साबित करके दिखाया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति द्वारा दीक्षा उपदेश प्रदान किया गया। छात्र-छात्राओं ने भी इस उपदेश के वाचन के साथ प्रतिज्ञा ली। दीक्षांत समारोह प्राचीन भारत की गुरुकुल परम्परा के समावर्तन समारोह का ही परिवर्तित रूप है। इसके माध्यम से स्नातक अपनी शिक्षा को पूर्ण करने के बाद नए जीवन में प्रवेश करते थे। मुख्यमंत्री जी ने कहा कि दीक्षान्त समारोह के माध्यम से उन्हें विश्वविद्यालय के परिसर में चल रही गतिविधियों तथा कार्यकलापों को बहुत नजदीक से देखने का अवसर प्राप्त हुआ। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से विभिन्न संस्थाओं में चल रही अच्छी गतिविधियों को प्रदेश के अन्य संस्थानों में लागू करने के लिए मार्ग प्रशस्त होता है। संस्थानों से इन अच्छे कार्यों को लागू करने के बारे में कहा जाता है, ताकि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा खड़ी हो सके। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माध्यम से ही हम आगे बढ़ पाएंगे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि दीक्षान्त समारोह दीक्षा का अन्त नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत होता है। प्राचीन काल में गुरुकुल अथवा किसी ऋषि के आश्रम में स्थापित विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा उपदेश स्नातकों को दिया जाता था कि, ‘सत्यं वद धर्मं चर’ अर्थात् सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। तैत्तिरीय उपनिषद का यह मंत्र आज हजारों वर्षों के बाद भी भारत में दीक्षा उपदेश बनकर युवाओं को भावी जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। धर्म का अर्थ बहुत विराट होता है। दुनिया में भारत के ऋषियों ने ही धर्म के वास्तविक अर्थ को समझा है। ऋषियों ने धर्म को उपासना विधि तथा किसी एक ईष्ट या ग्रंथ तक सीमित नहीं किया।
वेदों की परम्परा सृष्टि के उद्भव के समय की परम्परा है। लम्बे कालखण्ड में अलग-अलग ऋषियों द्वारा वेदों की रचना की गई। उस समय श्रवण की भी परम्परा थी। गुरु द्वारा वेदों का पाठन किया जाता था। शिष्य उसे अंगीकार करते थे। यह प्रक्रिया लम्बे समय तक चलती रही और 5000 वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास के नेतृत्व में ऋषियों की एक बड़ी मण्डली ने वेदों को लिपिबद्ध करने का काम किया। यह कार्य जनपद सीतापुर के नैमिषारण्य में किया गया।
आज भी प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी अपने घर में वेद, पुराण तथा अन्य धार्मिक पुस्तकों को इसलिए संजोकर रखता है, क्योंकि यह ग्रंथ हमारी धरोहर हैं। यह हमारी पहचान भी है। हमारी ऋषि परम्परा कहती है कि ‘धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः’ धर्म का तत्व बहुत सूक्ष्म होता है। इसको प्रत्येक व्यक्ति नहीं समझ सकता। इसलिए जो महापुरुष कहें, उसी का अनुसरण किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हमारी भारतीय परम्परा ने धर्म की बहुत संक्षिप्त व्याख्या की है। जो इस जीवन में सांसारिक उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करे तथा जिसके माध्यम से परलोक के लिए भी मार्ग प्रशस्त हो, वही धर्म है। इसीलिए कर्तव्य, सदाचार और नैतिक मूल्यों के प्रवाह को ही धर्म माना गया है। धर्म की यह व्याख्या दुनिया में कहीं भी अंगीकार नहीं की गई है। भारत में वैदिक धर्म को न मानने वाले चार्वाक को भी ऋषि माना गया। यहां वेदों की व्यवस्था पर विश्वास न करने वाले बुद्ध को एक अवतार के रूप में मान्यता प्रदान की गई। हम लोग इस महान परम्परा के वारिस हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारत में किसी भी ऋषि ने यह कभी नहीं कहा कि जो मैं कह रहा हूं वह सत्य है। ऋषियांे ने कहा कि देश और समाज के लिए जो अच्छा हो उसका आचरण करके आगे बढ़ना चाहिए। कोई भी सनातन धर्मावलम्बी यह नहीं कह सकता है कि वह तभी हिन्दू है, जब मंदिर जाएगा। जो मंदिर जाता है तथा जो नहीं जाता है, दोनों सनातनी हैं। हिन्दू होने के लिए वेदों को मानना, न मानना शास्त्रों में विश्वास करना, न करना आवश्यक परिस्थितियां नहीं है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जीवन में ऐसे अनेक पड़ाव आते हैं, जो व्यक्ति को महान बनने का अवसर प्रदान करते हैं। लेकिन यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह अवसर को अपने अनुकूल ढालने की सामर्थ्य रखता है अथवा नहीं। श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि ‘श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं’ अर्थात् जो श्रद्धावान है वही ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी है। जिसके मन में गुरु, माता-पिता, वरिष्ठजन आदि के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं है, उसको ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसीलिए भारतीय परम्परा में कहा गया है कि देश, काल और पात्रता का ध्यान रखा जाना चाहिए। पात्रता के अनुसार ही ज्ञान प्रदान
किया जाना चाहिए।
अयोध्या के राजकुमार प्रभु श्रीराम को मात्र 16 वर्ष की आयु में 14 वर्ष का वनवास हो जाता है। इस वनवास काल में उन्होंने भारत को उत्तर से दक्षिण तक जोड़ दिया। उस समय उनकी क्या आयु रही होगी, जब उन्होंने दण्डकारण्य में गुरुकुलों का संचालन करने वाले ऋषि-मुनियों को अभय प्रदान करने के लिए ‘निसिचर हीन करहुँ महि भुज उठाई पन कीन्ह’ का संकल्प लिया था। जब उन्होंने सेतुबन्ध का निर्माण किया होगा, सुग्रीव को किष्किंधा पर शासक के रूप में स्थापित किया होगा, रावण जैसे बलशाली को मारकर इस धरती को राक्षस विहीन करके वापस अयोध्या आए होंगे, तब उनकी क्या उम्र रही होगी। प्रभु श्री राम ने वनवासियों, गिर वासियों तथा समाज के अन्य वर्गों को जोड़कर समुद्र में 100 योजन में सेतुबन्ध का निर्माण किया था।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण कंस के अत्याचार से पीड़ित मथुरा को अभय प्रदान करते हैं। यह कार्य उन्होंने किशोरावस्था में ही किया। उन्होंने मथुरा-वृंदावन में अपनी लीला का प्रदर्शन किया। कंस के अत्याचारों से मथुरा को मुक्ति प्रदान करने के पश्चात वह गुरुकुल चले गए। गुरुकुल से वापस लौटकर वह द्वारका चले गए। उनका एक ही संकल्प था कि ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्’। पूरी दुनिया को निर्वाण का संदेश देने वाले तथा ‘अप्पो दीपो भवः’ के माध्यम से स्वयं के अन्दर ज्योति को देखने की प्रेरणा प्रदान करने वाले भगवान बुद्ध ने अपनी युवा ऊर्जा के माध्यम से समाज को नई दिशा प्रदान की। आदि शंकराचार्य मात्र 32 वर्ष तक जीवित रहे। अपने जीवन काल में उन्होंने देश के चार कोनों में चार पीठों की स्थापना की। सनातन धर्म के ध्वजवाहक के रूप में उन्होंने पूरे देश को एकता के सूत्र में जोड़ा। वह केरल में जन्मे थे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ‘जो दृढ़ राखे धर्म को, तिहि राखे करतार’ का उद्घोष करने वाले महाराणा प्रताप ने मात्र 22 हजार सैनिकों के साथ 27 वर्ष की उम्र में हल्दीघाटी का पहला युद्ध लड़ा। अकबर की सेना एक लाख से अधिक थी। महाराणा प्रताप इस युद्ध को लगातार 30 वर्ष तक लड़ते रहे। अन्ततः अपने समस्त दुर्ग व किलों को अकबर से वापस प्राप्त कर भारत के स्वाभिमान की रक्षा की। हिन्दवी साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की कीर्ति किसी परिचय की मोहताज नहीं है। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के चार साहिबजादों ने किशोरावस्था में ही स्वयं को देश तथा धर्म के लिए बलिदान कर दिया।
उस वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई को याद करिए जिसके बारे में कहा जाता है कि ‘सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आयी फिर से नयी जवानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मात्र 26 वर्ष की आयु में रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी थीं। अंग्रेज उन्हें परास्त नहीं कर सके थे। वीर सावरकर दुनिया के पहले क्रांतिकारी थे, जिन्हें एक ही जन्म में दो आजीवन कारावास की सजा हुई थी। उस समय वीर सावरकर की उम्र मात्र 28 वर्ष थी। ‘इस भारतवर्ष में सौ बार मेरा जन्म हो, कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो’ का उद्घोष करने वाले काकोरी ट्रेन एक्शन के महानायक पं0 राम प्रसाद बिस्मिल, ठा0 रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खान, राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी जैसे महान क्रांतिकारी यह सब युवा ही थे। तत्कालीन परिस्थितियों में महापुरुषों ने देश को नयी दिशा प्रदान की। उन्होंने देश की धारा को बदलने का काम किया। वह सभी युवा थे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि युवा क्या नहीं कर सकता। युवाओं द्वारा विज्ञान, शोध तथा नवाचार के क्षेत्र में देश तथा दुनिया में बहुत कार्य किए गए हैं। फ्रांस के वैज्ञानिक लुईस ब्रेल ने मात्र 15 वर्ष की आयु में दृष्टिबाधितों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार किया था। आइन्स्टीन ने मात्र 26 वर्ष की आयु में सापेक्षता के सिद्धांत की पुष्टि की। न्यूटन ने मात्र 23 वर्ष की आयु में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की। आज के समारोह में उपस्थित ज्यादातर युवा 16 से 25 वर्ष की आयु के होंगे। आपके लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है, लेकिन कुछ करने का जज्बा होना चाहिए। हमें जीवन में नवाचार, नए शोध तथा अपने आसपास घटित होने वाली प्रत्येक घटना का अवलोकन करने की एक कार्यशैली विकसित करने के लिए तैयार होना चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस विश्वविद्यालय के विधि संकाय के पट्ट पर फैकेल्टी आफ लॉ भी लिखा जा सकता था, जबकि यहां ज्यूडिशरी साइंसेज लिखा गया है। यह नवाचार को दर्शाता है। हमारे आस-पास घटित होने वाली प्रत्येक घटना कुछ सीखने तथा जानने का अवसर प्रदान करती है। यदि आप इन बातों को नोट करते चलेंगे तो आपके पास एक अच्छा स्टडी मैटेरियल तैयार हो जाएगा। शोध का एक बड़ा ग्रंथ तैयार हो सकता है। आपके पब्लिकेशन नेशनल और इंटरनेशनल जर्नल में छपेंगे। हमें लिखने की आदत डालनी पड़ेगी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जो समाज विज्ञान तथा रिफॉर्म से पीछे हटा वह कभी आगे नहीं बढ़ पाया। कोई भी तकनीक या रिफॉर्म आता है, तो पहले उसका विरोध होता है। पहले देश में 2-जी को लेकर विरोध हुआ था। 5-जी को लेकर लोगों में आशंका थी। लोगों ने इसको भी स्वीकार कर लिया। अब 6-जी की तैयारी चल रही है। जी का यह सिलसिला कहां तक जाएगा यह देखना होगा। आपको इसके लिए स्वयं को तैयार करना होगा। देश में टेलीकॉम के क्षेत्र में एक अद्भुत क्रांति आई है। सन् 1947 से 1989 तक देश में केवल आधा प्रतिशत लोगों के पास लैण्डलाइन टेलीफोन की सुविधा थी। प्रयास करने पर यह संख्या दो प्रतिशत तक पहुंच गई। श्रद्धेय अटल जी के नेतृत्व में वर्ष 1999 में रिफॉर्म के लिए कदम उठाए गए। आज भारत में 100 करोड़ लोगों के पास स्वयं का स्मार्टफोन है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि 1990 के दशक में कम्प्यूटर का जोरदार विरोध हुआ। यह कहा गया कि कम्प्यूटर लोगों का रोजगार छीन लेगा। आज कौन सा ऐसा घर तथा संस्थान है, जहां कम्प्यूटर से काम नहीं किया जा रहा है। प्रदेश सरकार 02 करोड़ युवाओं को टैबलेट या स्मार्टफोन उपलब्ध कराने का कार्य कर रही है। यदि हमारा युवा तकनीकी दृष्टि से सक्षम नहीं होगा, तो चुनौतियों का सामना कैसे करेगा। जब प्रेस आया होगा तो भी लिखने वालों ने विरोध किया होगा कि उनका धन्धा चौपट हो रहा है। कुछ लोगों के लिए आप पूरे देश या समाज की यात्रा को बाधित नहीं कर सकते। ऐसे ही जब जी0पी0एस0 आया तब भी उसका विरोध किया गया। हम तकनीक के क्षेत्र में एक लम्बी यात्रा तय कर चुके हैं। आज चैट जी0पी0टी0 के माध्यम से कुछ मिनटों में किसी भी विषय पर आर्टिकल तैयार किया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आपके काम को और आसान बना रहा है। लेकिन यह उतना ही चुनौती पूर्ण भी है। अब ऑटोमेशन, क्रिप्टोकरेंसी, इंटरनेट आफ थिंग्स जैसी अनेक युक्तियां आ चुकी हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने एक तरफ हमारे जीवन को सरल तथा सुगम बनायालेकिन डीपफेक की समस्या भी हमारे सामने आई। अब आवाज और वीडियो की हूबहू नकल करके डिजिटल अरेस्ट जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। इसके सुरक्षात्मक उपायों तथा नैतिक निहितार्थों के बारे में टेक उपयोगकर्ता के साथ-साथ संस्थानों का भी काम है। हमें सजग होकर लोगों को इसके प्रति जागरूक करना चाहिए। यदि आपसे कोई बात कही जा रही है, तो उसके क्रॉस वेरीफिकेशन की भी आवश्यकता है।
हम लोग क्वाण्टम कम्प्यूटिंग के युग में भी प्रवेश कर चुके हैं। कृषि के क्षेत्र में जीन एडिटिंग का कार्य किया जा रहा है। यह यात्रा अनवरत चलती रहेगी। विज्ञान ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति की है। हम यदि स्वयं को इससे अलग करते हैं तो स्वयं के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के साथ भी अन्याय होगा। तकनीक जब विस्तार लेती है तो वह कम कीमत पर उपलब्ध हो जाती है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हमें जीवन के हर क्षेत्र में विकास की ओर उन्मुख होना चाहिए। सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है। वर्ष 2017 से पूर्व प्रदेश के 08 मण्डलों में एक भी विश्वविद्यालय नहीं था। पहले चरण में प्रत्येक मण्डल में सरकारी विश्वविद्यालय खोलने का काम किया गया। जिन जनपदों में सरकारी विश्वविद्यालय नहीं है तथा न ही निजी क्षेत्र में कोई विश्वविद्यालय है। एक नीति लाकर तथा इन्सेंटिव देकर वहां नए विश्वविद्यालय बनाने के लिए निजी संस्थानों को प्रेरित किया गया। प्रदेश में निजी क्षेत्र में अब तक ऐसे 26 से अधिक विश्वविद्यालय बने हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश में वर्ष 1947 से लेकर वर्ष 2017 तक 70 वर्षों में मात्र 12 सरकारी मेडिकल कॉलेज बने थे। प्रदेश में जब कोविड-19 ने दस्तक दी थी तो राज्य सरकार द्वारा कराई गई स्टडी में पता चला कि प्रदेश के 75 में से 36 जनपदों में आई0सी0यू0 का एक भी बेड नहीं था। कोविड के दुष्प्रभावों से बचाव के लिए कार्य प्रारम्भ किए गए। तय किया गया कि हमें मेडिकल कॉलेजों का निर्माण करना पड़ेगा। आज प्रदेश के 75 जनपदों में से मात्र 08 से 10 जनपद ऐसे हैं जहां मेडिकल कॉलेज नहीं है। इनमेंचित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, हाथरस, कासगंज, संतकबीरनगर तथा श्रावस्ती आदि जनपद सम्मिलित हैं। शेष अन्य जनपदों में मेडिकल कॉलेजों का निर्माण किया जा चुका है।
प्रदेश सरकार ने नीति तय कर दी है। इसके अन्तर्गत लैण्ड तथा कैपिटल एक्सपेंडिचर में प्रदेश सरकार द्वारा सहयोग किया जा रहा है। राज्य के जिन जनपदों में विश्वविद्यालय नहीं है, यदि वहां निजी क्षेत्र के द्वारा विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा तो राज्य सरकार इस कार्य में भी सहयोग करेगी। इसके माध्यम से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा आगे बढ़ाई जा सकती है। 70 से 75 एकड़ क्षेत्रफल में प्रतिदिन 1000 या 1500 लोग उपचार की सुविधा प्राप्त करें। 04 हजार से 05 हजार लोग सीधे रोजगार प्राप्त कर सकें। हजारों छात्र-छात्राएं अपने जीवन को सजाने और संवारने के लिए तैयार हो सके। देश को अलग-अलग क्षेत्रों में अच्छे युवा प्राप्त हो सकें। यह केवल शिक्षा तथा स्वास्थ्य में निवेश से सम्भव हो सकता है, जो रामा विश्वविद्यालय ने यहां पर करके दिखाया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज मनुष्य का मनुष्य बना रहना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए संस्थानों को अपने विद्यार्थियों को ज्ञानवान तथा शीलवान बनाना पड़ेगा। उनके सामने वह लक्ष्य रखना पड़ेगा, जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देशवासियों के सामने रखा है। हमारा व्यक्तिगत स्वार्थ कोई मायने नहीं रखता। हम सभी के सामने राष्ट्र धर्म का लक्ष्य होना चाहिए। कोई भी मत, मजहब या उपासना विधि जो राष्ट्र के लिए चुनौती बन रहा है, तो उसे एक ओर करना पड़ेगा। राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानना पड़ेगा। यदि हम राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानकर कार्य करेंगे तो भारत को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा। पूरे विश्व का ध्रुवीकरण आज भारत के इर्द-गिर्द होने जा रहा है। यदि आप अगले 10 वर्षों की यात्रा को देखेंगे तो यह यात्रा शानदार तरीके से आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। इस शानदार यात्रा के लिए आपको स्वयं को तैयार करना होगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ट्रेडीशनल और मॉडर्न मेडिसिन को जोड़कर कैसे आप एक अच्छा कार्य आगे बढ़ा सकते हैं, इस पर व्यापक रूप से विचार करने की आवश्यकता है। टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए हम दूर-दराज के गांवों में टेली कंसल्टेशन तथा टेली मेडिसिन की सुविधा लोगों को दे सकते हैं। आपका टेक्नीशियन उन गांवों में जाकर लोगों को आपके साथ जोड़ने का कार्य करेगा। सामान्य मरीजों को आप टेली कंसल्टेशन के माध्यम से देखिए तथा गंभीर मरीजों को अस्पताल की सुविधा उपलब्ध कराइए। इसे अनावश्यक भीड़ एकत्रित नहीं होगी तथा लोगों को गांवों में ही सुविधा प्राप्त हो सकेगी। इस कार्य में ए0आई0 टूल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
यह सौभाग्य की बात है कि यहां एक साथ इण्टीग्रेटेड कैम्पस है। इसमें मेडिकल, आयुर्वेद, फॉर्मेसी, नर्सिंग, इंजीनियरिंग, कृषि तथा विधि आदि फैकल्टी सम्मिलित हैं। यह सब कुछ एक कैम्पस में प्राप्त हो रहा है। इस कैम्पस में 12 से 15 हजार लोग एक समय में रहते हैं। यहां का ड्रेनेज, सीवर तथा सॉलिड मैनेजमेंट की व्यवस्था किसी पारम्परिक पद्धति के माध्यम से करने के बारे में सोचना चाहिए। इस क्षेत्र में नवाचार तथा नए शोध को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जब मैं विश्वविद्यालय की प्रगति यात्रा को देख रहा था तो ज्ञात हुआ कि विश्वविद्यालय के 5,000 से अधिक शोध पत्र राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं तथा जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। 150 से अधिक पेटेंट के कार्य किए गए। 30 राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन अब तक यहां पर सम्पन्न हो चुके हैं। 300 विस्तार और आउटरीच कार्यक्रम किये जा चुके हैं। छात्रों तथा शिक्षकों को 200 पुरस्कार और मान्यताएं प्राप्त हो चुकी हैं। 80 राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त हो चुके हैं। यहां पर एक इनक्यूबेशन सेंटर भी स्थापित किया जा चुका है। यह एक शानदार यात्रा है इसे और अच्छे तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है।
विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ0 सूरज बाबू सिंह कुशवाह ने विश्वविद्यालय का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम को विधानसभा अध्यक्ष श्री सतीश महाना तथा उच्च शिक्षा मंत्री श्री योगेन्द्र उपाध्याय ने भी सम्बोधित किया।
ज्ञातव्य है कि दीक्षान्त समारोह में वर्ष 2023 और 2024 में उत्तीर्ण 1937 विद्यार्थी और शोधकर्ताओं को उपाधियां प्रदान की गयी। इनमंे 51 विद्यार्थियों को डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की उपाधि हुई तथा 84 विद्यार्थियों को उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए स्वर्ण पदक प्राप्त हुए।
इस अवसर पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री श्री राकेश सचान, महिला कल्याण राज्यमंत्री श्रीमती प्रतिभा शुक्ला, विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ0 जनार्दन अमरनाथ बी0जे0, कानपुर की महापौर श्रीमती प्रमिला पाण्डे, विधायक श्री सुरेन्द्र मैथानी, श्री महेश त्रिवेदी, श्री अभिजीत सिंह सांगा, श्री राहुल बच्चा सोनकर सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण, विश्वविद्यालय के अध्यापकगण, छात्र-छात्राएं तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
source: http://up.gov.in