कंगड़ा का ब्रजेश्वरी माता मंदिर, 51 शक्तिपीठों में से एक है, मकर संक्रांति पर 25 क्विंटल मक्खन से माता की पिंडी को सजाने की परंपरा से प्रसिद्ध है। इस परंपरा का धार्मिक महत्व है, जो चर्म रोगों को दूर करने में सक्षम है।
हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध ब्रजेश्वरी मंदिर में माता की पिंडी को मकर संक्रांति के दिन घृत मंडल से सजाया गया है। अगले सात दिनों तक यह घृत मंडल माता की पिंडी पर सजा रहेगा। आपको बता दें कि मंदिर के पुजारियों ने मकर संक्रांति पर लगभग बीस क्विंटल मक्खन से ब्रजेश्वरी माता की पिंडी पर घृत मंडल सजाने की प्रक्रिया शुरू की। 7 दिनों के बाद श्रद्धालुओं को मक्खन प्रसाद के रूप में दिया जाएगा।
इस परंपरा का इतिहास क्या है?
देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कहा कि यज्ञ में उन्हें न बुलाने पर उन्होंने अपना और भगवान शिव का अपमान समझा और उसी हवन कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए थे। यह लेप माता को इन घावों और जालंधर दैत्य से युद्ध के दौरान हुए जख्मों को भरने के लिए लगाया जाता है, लेकिन इस दौरान माता सती मर गई। तब भगवान शंकर ने देवी सती का मृत शरीर लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहे थे।
उस समय, भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती का शरीर 51 भागों में बाँट दिया, और उनके शरीर के अंगों ने धरती पर कई स्थानों पर गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया। यहाँ मां बज्रेश्वरी, या कांगड़ा माई के नाम से पूजा जाता है, मां सती का बायां वक्षस्थल गिरा था। चरम रोगियों के लिए माता श्री बज्रेश्वरी देवी की पिंडी पर चढ़ाया गया मक्खन बहुत महत्वपूर्ण है। मक्खन का लेप चर्म रोगों में फायदेमंद है। वहीं, सुबह से ही लोग माता के दर्शन करने के लिए लंबी लाइनों में लगे हुए थे। श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भी जिला प्रशासन ने कड़े प्रबंध बनाए हैं।
श्रद्धालु ने क्या कहा?
मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए हर वर्ष मंदिर पहुंचने वाले स्थानीय श्रद्धालु अनुज अवस्थी ने बताया कि यह परंपरा बरसों से चल रही है और वह हर साल इस मौके पर माता के दर्शन करने आते हैं।
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