Maha Kumb 2025: 13 जनवरी से संगम नगरी में महाकुंभ शुरू होने वाला है
Maha Kumb 2025: धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज में कुछ दिन बाद नजारा अलग होगा। बड़े-बड़े तंबू, चिलम सुलगाते नागा साधू, जटाएं लहराते हुए डुबकी लगाते संत, रंगीन लाइटें और अनगिनत पुलिस। 13 जनवरी से संगम नगरी में महाकुंभ शुरू होने वाला है। 45 दिन तक चलने वाले इस मेले को समाप्त करने में मेला प्रशासन व्यस्त है। प्रयागराज के प्रमुख घाटों के अलावा यहां स्थित कुछ मंदिरों का दर्शन करना इस विशिष्ट धार्मिक उत्सव का एक यादगार अनुभव हो सकता है। ऐसे में, महाकुंभ में डुबकी लगाने के बाद प्रयागराज के तीन प्रसिद्ध मंदिरों का दर्शन करना अनिवार्य है। इन मंदिरों का अतीत बहुत पुराना है। माना जाता है कि इस मंदिर को देखने के बिना संगम से लौटना एक पूरी यात्रा के बराबर है। ये मंदिरों और उनके इतिहास को जानें-
पातालपुरी (प्रयागराज) मंदिर
संगमनगरी में कई मंदिर अलग-अलग देवताओं को समर्पित हैं। कुछ मंदिर बहुत प्राचीन हैं। यह भी पातालपुरी मंदिर है। नाम से ही पता चलता है कि यह जगह जमीन के नीचे है। यह मंदिर संगम तट पर है। इस मंदिर में जाकर आप स्वर्ग और नर्क के मूल सिद्धांतों को समझ सकेंगे। माना जाता है कि प्रवेश द्वार पर धर्मराज की मूर्ति दिखेगी। और आप सीढ़ियों से उतरकर मृत्यु के देवता यमराज की मूर्ति देखेंगे। पृथ्वीलोक के मध्य में एक छोटा गलियारा है, जहां हमारे कार्य होते हैं। मंदिर परिसर में छठवीं शताब्दी की मूर्तियां भी हैं, साथ ही देवांगन की दीवारें, जिन्हें अकबर ने ढकवा दी थीं। यही स्थान है जहां माता सीता ने त्रेतायुग में अपने कंगन दान किए थे। इसलिए गुप्त दान इस स्थान पर किया जाता है। तीर्थों के राजा प्रयाग की प्रतिमा भी भगवान है, जो अपने अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान है। यहाँ भगवान शनि को समर्पित एक निरंतर ज्योति है, जो बारह महीने तक जलती रहती है।
धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर बहुत प्राचीन नागवासुकी मंदिर है। इस मंदिर में नागराज वासुकी नाग विराजमान है। मान्यता है कि प्रयागराज आने वाले हर पर्यटक की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती जब तक कि वह नागवासुकी का दर्शन नहीं कर लेते। कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था जब वह भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था। उसने मूर्ति पर भाला चलाते ही दूध की धार अचानक उसके चेहरे पर गिरी, जिससे वह बेहोश हो गया। अंततः वह निराश और निराश होकर वापस लौट गया। तब से आज तक, इस प्राचीन मंदिर की महिमा चारों ओर गाई जाती है।
सरस्वती कूप और अक्षय वट
श्रद्धालुओं को अक्षयवट और सरस्वती कूप आकर्षित करता है। जब बात अक्षय वट की आती है, तो यह एक पवित्र बरगद का वृक्ष है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता।यह चार युगों से इस स्थान पर है। त्रेतायुग में भगवान श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण यहां आए थे और इस वृक्ष के नीचे तीन रातें बिताए थे। यह भी मानते हैं कि अक्षयवट अस्तित्व में रहेगा जब प्रलय आ जाएगा और पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। वहीं, सरस्वती कूप (या काम्यकूप) में पहले लोग कूदकर मरते थे, क्योंकि उन्होंने सोचा था कि इसके जल से मोक्ष मिलता है। अकबर के शासनकाल में इसे छिपा दिया गया था। अब इस स्थान पर सिर्फ कूंए का ढका हुआ हिस्सा दिखाई देता है। जब आप इस जगह पर पहुंचेंगे तो आपको लाल रंग से चिन्हित एक गोलाकार स्थान दिखाई देगा।