Pitru Paksh 2024
Pitru Paksh 2024: पितृपक्ष शुरू हो चुके हैं. यह समय पितरों के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने का होता है. मान्यता है कि पितर इस समय धरती पर आते हैं। लेकिन बहुत से लोग तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान के बीच अंतर नहीं जानते। यही कारण है कि हम पितरों के निमित्त कई बार गलती कर बैठते हैं। देवघर के ज्योतिषाचार्य ने इस मुश्किल को हल करते हुए बताया कि किस समय किसे श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना चाहिए।
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने बताया कि 18 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो गया है। पितृपक्ष में अपने पितरों के नाम से तर्पण करना अनिवार्य है। क्योंकि पितर धरती पर 15 दिन रहते हैं। मान्यता है कि इस दौरान पिंडदान, श्राद्ध या तर्पण करके अपने पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। लेकिन पहले इन तीनों तरीकों को समझना होगा।
पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध का क्या महत्व है?
श्रद्धा का मतलब
मृत्यु के दस दिनों के बाद श्रद्धापूर्वक किया गया कार्य श्राद्ध कहलाता है। इसमें पितरों के निमित्त लोगों को भोजन और अन्य पारंपरिक कार्य किए जाते हैं। पितृश्राद्ध करते हैं। ब्राह्मणों को पितृपक्ष के दौरान पूर्वज की तिथि पर श्राद्ध भोज करना चाहिए।श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं
पिंडदान का मतलब
पिंडदान, यानी मृत पूर्वज को मोक्ष देना। इसमें जौ या आटे का गोल आकार होता है, जिसे पिंड कहते हैं। इसे दान करते हैं। पितृ गाय, कौवा, कुत्ता, चींटी या देवता के रूप में आकर भोजन करते हैं। भोजन के पांच हिस्से अलग किए जाते हैं। इससे पूर्वज स्वतंत्र हैं। गया में पिंडदान किया जाता है। जो नहीं जा सकते, वे किसी पीपल वृक्ष के नीचे या किसी नदी के किनारे पिंडदान कर सकते हैं।
तर्पण की व्याख्या
देव, ऋषि और मनुष्य तीन तरह के तर्पण करते हैं। हमें हर वर्ष तर्पण करना चाहिए। अगर साल भर नहीं कर पाते, तो कम से कम पितृपक्ष में पितरों के नाम से तर्पण करना चाहिए। तर्पण करते समय आप हाथ में तिल, जल, कुश और अक्षत लेकर पितर से प्रार्थना करते हैं कि वह जल पी लें। इससे पितृ खुश होते हैं। तर्पण पितृपक्ष के दौरान घर पर ही किया जा सकता है। इससे पितर खुश होते हैं। वास्तव में, कोई भी पुत्र अपने पूर्वजों के लिए ऐसा कर सकता है।