Sanatana Dharma
Sanatana Dharma: यज्ञोपवीत, या जनेऊ आज की पीढ़ी लगभग इस रिवाज को भूल चुकी है। इसकी शक्ति बहुत कम लोगों को पता है। आप हैरान हो जाएंगे अगर मैं कहूँ कि पूजा पाठ, साधना में सबसे पहला संस्कार है, “उपनयन संस्कार”। यह सुनकर धागा और ब्राह्मण पहले आते हैं। क्या ब्राह्मण ही जनेऊ से जुड़े हैं? अगर यह सिर्फ ब्राह्मणों से संबंधित है तो जनेऊ क्यों पहनते हैं? क्या इसका फायदा है? इस खबर से पता चलता है..।
माना जाता है कि जनेऊ हिंदूओं की पहचान है जिसमें नीति का पूरा सार शामिल है. इसी तरह, सूत के इन 9 धागों में जीवन का पूरा मार्गदर्शन मिल गया है, जैसे कोई महाकाव्य है।
जनेऊ का मूल अर्थ क्या है?
Sanatana Dharma: हमारे प्राचीन संस्कृति में जनेऊ का मूल अर्थ है। हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मरण तक के 16 संस्कार बताए गए हैं, गर्भादान से अंतिम संस्कार तक. इनमें से एक है “उपनयन संस्कार”, जिसे कई नामों से भी जाना जाता है। जैसे “जनेऊ” और “ब्रह्मसूत्र” जनेऊ का अर्थ है आपको परम सत्य की ओर ले जाना, यानी आप जिसके लिए बने हैं उस तक पहुंचना। संस्कृत के शब्दों “यज्ञ” और “उपवीत” इसका मूल है। वर्णों के बिना परमात्मा ने हमें सामान्य बनाया है, लेकिन कई विद्वानों का कहना है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही जनेऊ पहन सकते हैं। जनेऊ पहनने के बहुत कठिन नियमों का पालन करना चाहिए। इसके लिए आपको अध्यात्म के नियमों का पालन करना होगा और बहुत आगे बढ़ना होगा। आपको अपने शास्त्रों, उपनिषदों और वेदों को गहराई से समझना होगा। शास्त्र पढ़ना भी वर्जित है अगर आपका यज्ञोपवीत नहीं हुआ है।
किस उम्र में “जनेऊ” पहनना सुरक्षित है?
शूकर क्षेत्र फाउंडेशन के अध्यक्ष और ज्योतिषाचार्य डॉ. गौरव कुमार दीक्षित ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार यज्ञोपवीत संस्कार बालक को 09 वर्ष, क्षत्रिय को 11 वर्ष और वैश्य को 13 वर्ष से पहले करना चाहिए. माता के जन्म के बाद यज्ञोपवीत संस्कार को पुनर्जन्म कहा जाता है।
जैन परम्परा में यज्ञोपवीत धारण करने की उम्र आठ वर्ष है।
यह कहते हैं कि उपनयन संस्कार के बाद आप अपनी आत्मा को खोजने, समझने, पहचानने, संवारने, संभालने और खुद को विकसित करने में लग जाते हैं, जो आपको परमात्मा से जोड़ देता है। कहते हैं कि मां से पहला जन्म होता है और जनेऊ पहनने के बाद दूसरा जन्म होता है। जनेऊ के उन नौ धागों में परमात्मा है। हर धागे में तीन धागे, चार गांठ और एक ब्रह्मगांठ हैं। इन नौ धागों में नौ देवताओं का स्थान है: ओंकार, अग्नि, अन्नंत, चंद्र, पितृ, प्रजापति, वायु, जल और सूर्य। जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल है, इसलिए इसे पहनने वाले व्यक्ति को 64 कलाएं और 32 विद्याएं सीखने की कोशिश करनी चाहिए। नियमानुसार, जनेऊ को बाएं कंधे से कमर के दांए तरफ ही पहनना चाहिए। लंघु शंका होने पर इसे धागे के साथ दहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए, फिर हाथ को धोकर पहनना चाहिए।